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जुनख्यालि रात च छोरी / केशव ध्यानी

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जुनख्यालि<ref>चाँदनी</ref> रात च छोरी।
कनै हैंसि तू?
गाड<ref>नदी</ref> पाणि अफ नि पेंदि
फल नि खाँदा डाला
अन्न तैं भि भूख लगद
तीस मेघ-माला।
हर फूल जो स्वाणो<ref>सुन्दर</ref>
स्वाणे ही नि होंदो
बात को अन्ताज होंद
निस्तुको नि होंदो।
छूँ लगाई लाख, मगर
छपछपि छू लगद क्वी
औखियों मा दुनिया बसद
दिल भितर बसद क्वी
गाड द्यखण पड़द पैले
स्वाँ कु मरद फाल<ref>छलांग</ref>
भक्क कख मरेंद भौं<ref>हर कोई</ref> कै
बाँद<ref>सुन्दरी</ref> पर अँग्वाल<ref>आलिंगन</ref>।
भूको ब्वद वलि गदनी
अधणो ब्वद पलि गदनी।
अपणा दिलै मी जणदू
त्यरि जिकुड़ो<ref>हृदय</ref> कन च कनी।

शब्दार्थ
<references/>