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जुनूँ-नवाज़ सफ़र का ख़याल क्यूँ आया / अज़ीज़ अहमद खाँ शफ़क़

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जुनूँ-नवाज़ सफ़र का ख़याल क्यूँ आया
किसी की राहगुज़र का ख़याल क्यूँ आया

न जाने कौन अपाहिज बना रहा है हमें
सफ़र में तर्क-ए-सफ़र का ख़याल क्यूँ आया

जुनूँ को तेरी ज़रूरत का क्यूँ हुआ एहसास
सफ़र-गुज़र को घर का ख़याल क्यूँ आया

बहुत दिनों से इधर उस को याद भी न किया
बहुत दिनों ये उधर का ख़याल क्यूँ आया

यहाँ तो और भी रहते हैं अहल-ए-दर्द ‘शफ़क’
तुम्हें पड़ोस के घर का ख़याल क्यूँ आया