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जुनूँ की दस्त-गीरी किस से होे गर हो न उर्यानी / ग़ालिब

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जुनूँ की दस्त-गीरी किस से होे गर हो न उर्यानी
गरेबाँ-चाक का हक़ हो गया है मेरी गर्दन पर

बा-रंग-ए-कागज़-आतिश-ज़दा नै-रंग-ए-बेताबी
हज़ार आइना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर

फ़लक से हम को ऐश-ए-रफ़्ता का क्या क्या तक़ाज़ा है
मता-ए-बुर्दा को समझे हुए हैं क़र्ज़ रहज़न पर

हम और वो बे-सबब रंज-आश्‍ना दुश्‍मन कि रखता है
शुआ-ए-मेहर से तोहमत निगह की चश्‍म-ए-रौज़न पर

फ़ना को सौंपा गर मुश्‍ताक़ है अपनी हक़ीक़त का
फ़रोग़-ए-ताला-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुख़न पर

‘असद’ बिस्मिल है किस अंदाज का क़ातिल से कहता है
कि मश्‍क़-ए-नाज-कर ख़ून-ए-दो-आलम मेरी गर्दन पर

फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्‍मन पर
कि वजह-बर्क़ ज्यूँ परवाना बाल-अफ़्षाँ है ख़िर्मन पर

तकल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इल्तिमास-ए-बे-क़रारी है
कि रिष्ता बाँधता है पैरहन अंगुश्‍त-ए-सोज़न पर