Last modified on 23 अगस्त 2018, at 21:53

जुनूँ के जितने तक़ाज़े हैं भूले जाते हैं / शहरयार

जुनूँ के जितने तक़ाज़े हैं भूले जाते हैं
कि साथ वक़्त के लो हम भी बदल जाते हैं

ज़रूर हम से हुई है कहीं पे कोताही
तमाम शहर में सन्नाटे फैले जाते हैं

कि आन पहुँचा है दरिया तेरे ज़वाल का वक़्त
जो हमसे लोग किनारे पे ठहरे जाते हैं

ज़मीं ने हम को बहुत देर में क़ुबूल किया
जली हुरूफ़ में ये बात लिक्खे जाते हैं

वही कि जिससे तअल्लुक बराए-नाम है अब
उसी का रास्ता दिन रात देखे जाते हैं।