भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं / ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'
Kavita Kosh से
जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं
ख़िरद की तरह कम-नज़र भी नहीं
किसी राह-ज़न का ख़तर भी नहीं
के दामन में गर्द-ए-सफ़र भी नहीं
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मुफ़िर भी नहीं
नज़र मोतबर है ख़बर मोतबर
मगर इस क़दर मोतबर भी नहीं