भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जुनून-ए-इश्क की रस्म-ए-अजीब क्या कहना / मजीद 'अमज़द'
Kavita Kosh से
जुनून-ए-इश्क की रस्म-ए-अजीब क्या कहना
मैं उन से दूर वो मेरे क़रीब क्या कहना
ये तीरगी-ए-मुसलसल में एक वक़्फा-ए-नूर
ये ज़िंदगी का तिलिस्म-ए-अजीब क्या कहना
जो तुम हो बर्क़-ए-नशेमन तो मैं नशेमन-ए-बर्क़
उलझ पड़े हैं हमारे नसीब क्या कहना
हुजूम-ए-रंग फरावाँ सही मगर फिर भी
बहार नौहा-ए-सद अंदलीब क्या कहना
हज़ार क़ाफिला-ए-ज़िंदगी की तीरा-शबी
ये रोशनी सी उफु़क के क़रीब क्या कहना
लरज़ गई तेरी लौ मेरे डगमगाने से
चराग़-ए-गोशा-ए-कू-ए-हबीब क्या कहना