जुनैद / अंचित
जुनैद मेरे सबसे करीबी सीनियर का नाम था।
एक बार साथ में
जूनियर्स का इंट्रो लेते हुए,
हमें भागना पड़ा,
पुलिस से।
उसने मुझे इकबाल छात्रावास की दीवार फंदाई.
वो अलग समय था।
मैं तब ब्राह्मण का लड़का नहीं था,
वो बंगाली मुसलमान नहीं था,
इकबाल हॉस्टल मेरे लिए
शरणस्थल हो सकता था
वो अलग समय था।
जब मैंने पहला रोज़ा रखा, यही जुनैद याद आया।
पहली इफ्तारी की बकरखानी उसकी बदौलत थी।
परीक्षा के दिनों में घंटों ह मसब मित्र बहस करते
बैठे हुए उसके कमरे पर।
डर के माहौल में निडरता का कारण जुनैद।
टीवी पर खबर देखते हुए लगा मित्र की लाश है सामने
और कभी ना पराजित हो सकने वाला मेरा दोस्त ही
झुका दिया गया है।
और मैंने कुछ नहीं किया।
जब बल्लभगढ़ का जुनैद मारा गया,
बंगाल का जुनैद क्या सोचता होगा?
देश के दूसरे जुनैद क्या सोचते होंगे?
इन जुनैदों के ब्राह्मण दोस्त क्या सोचते होंगे?