भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुल्फों को मैं सवार लूँ अब क्या खयाल है / अर्चना जौहरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुल्फों को मैं सँवार लूँ अब क्या खयाल है
खुद को ज़रा निहार लूँ अब क्या खयाल है

जो पल हैं आज,लौट के आएँ न आएँ फिर
इनको ज़रा दुलार लूँ ,अब क्या खयाल है

क्यूं मुस्कराये जा रही हूँ यूँ ही बेसबब
अपनी नज़र उतार लूँ ,अब क्या खयाल है

हाँ इक भरम में ही सही, जी तो रही हूँ मैं
जीवन यूँही गुज़ार लूँ अब क्या खयाल है

माना कि दूरियाँ हैं, बहुत दूरियाँ हैं अब
फिर भी उन्हें पुकार लूँ ,अब क्या खयाल है

आवाज दे रहा है मुझे कब से आसमां
पंखों को मैं पसार लूं अब क्या खयाल है