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जुल्म के तल्ख़ अन्धेरों के तलबगार हो तुम / महेश कटारे सुगम
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जुल्म के तल्ख़ अन्धेरों के तलबगार हो तुम ।
हमको मालूम है नफ़रत के मददगार हो तुम ।।
जिसके हर शब्द में इक मौत नज़र आती हो,
आज के दौर का खूँखार-सा अख़बार हो तुम ।
तुमने घर-घर में ज़राइम को पनाहें दी है,
एक मेरे नहीं दुनिया के गुनहगार हो तुम ।
देखना एक दिन तुम से ये कहेगी दुनिया,
ख़ौफ़ खाए हुए हालात से बेज़ार हो तुम ।
तुम जो चाहो तो ज़माने को बदल सकते हो,
वक़्त के साथ हो क़ाबिल हो समझदार हो तुम ।
23-01-2015