भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुवान बेटी / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुवान होंवती बेटी
जद घर सूं बारै जावै
तद
कितै लोगां री
भूखी आंख्यां रौ
सा'मणौ करै
उणां री फब्तियां सुणै
अर फेर भी
बा' कित्ती सै'ज रै'वै
पण
आपरै मन री पीड़ा
बा' किणी नै नीं कै'वै ।