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जुहू नरेन्द्र जैन और कविता / बुद्ध / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
Kavita Kosh से
कविता ने दी दस्तक सुबह सुबह
नरेन्द्र जी से बात हुई सुबह सुबह।
तय हुआ कि विदिशा और चण्डीगढ़ के बीच सफ़र करेंगी कविताएँ।
इसी ख़ुशी में एक जहाज़ मेरी छत के ऊपर से उड़ कर गया।
उसमेें बैठे लोग थके हुए भी उतावले लगे।
उन सबके कान खड़े थे और वे कविता की दस्तक सुन रहे थे।
हर कोई जब पढ़ रहा था बादलों की कविताएँ
मैंने जुहू बीच पर देखीं लहरों की कविताएँ।
जहाज़ में बैठे एक कवि ने खिड़की खोली
कविता फरफराते पन्नों में हो ली।
धीरे धीरे उड़ते उड़ते
जुहू बीच पर कविता बरसी।
नरेन्द्र जी से बात हुई सुबह सुबह।
दिन कविता कविता हुआ सुबह सुबह।