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जूड़े में फूल आंखों में काजल नहीं रहा / फ़िरदौस ख़ान
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जूड़े में फूल आंखों में काजल नहीं रहा
मुझसा कोई भी आपका पागल नहीं रहा
ताज़ा हवाओं ने मेरी ज़ुल्फ़ें तराश दीं
शानों पर झूमता था वह बादल नहीं रहा
मुट्ठी में क़ैद करने को जुगनू कहाँ से लाऊँ
नज़दीक-ओ-दूर कोई भी जंगल नहीं रहा
दीमक ने चुपके-चुपके वह अल्बम ही चाट ली
महफ़ूज़ ज़िन्दगी का कोई पल नहीं रहा
मैं उस तरफ़ से अब भी गुज़रती तो हूँ मगर
वो जुस्तजू, वह मोड़, वह संदल नहीं रहा
'फ़िरदौस' मैं यक़ीं से सोना कहूँ जिसे
ऐसा कोई भी मुझसा क़ायल नहीं रहा