भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जूनी मटकी / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
जूनी मटकी
जब पूछ बैठती है
जूने कुंए से
जल का रंग
तब
केवल ताक कर
रह जाता है मौन
अपने तन पर लगे
जल के सदियों पुराने
लहरीले रंग
और
तब
मटकी की कुंआरी प्यास
तोड़ देती है दम\देखकर
कुंए में फ़ैला
दूर-दूर तक अंधा मौन।