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जूरी / रंजना जायसवाल

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कहने को तो
सात-आठ साल की बच्ची थी वह
पर सूक्ष्म निरीक्षक थी
तभी तो जान गयी कि
नहीं है यह उसका प्यारा चूजा
जिसकी टूट गयी थी टाँग
उसके फुदकने की खुशी में
भूल गयी वह कि
रात को लगाकर दवा जिसकी टाँग में
बाँधी थी पट्टी
कैसे फुदक सकता है पहले की तरह
इतनी जल्दी-‘यह नहीं है मेरा जूरी
वह ऐसा था, वैसा था-बताते हुए
बिलख पड़ी कि
मम्मी-पापा ने की मुझे छलने की कोशिश!
नाना के साथ लगाती हुई डॉक्टरों के चक्कर
उदास-हताश होकर भी उत्साहित
नन्हीं बच्ची पा लेती है अन्ततः
चूजों का असली डॉक्टर
क्या जूरी सिर्फ चूजा था
जिसे समझने की फुरसत
न बड़ों को थी
ना उन लड़कों को
तोड़ी थी जिन्होंने उसकी टाँग
जाने क्यों देखते हुए ईरानी बाल फिल्म जूरी
मुझे हर बार लगा
जूरी के बदले कुछ और न
चाहने वाली वह बच्ची ही
बचाएगी मर रही संवेदना।