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जूलिएट का कमरा / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
आभूषण, इत्र, चूड़ियाँ,
खुले संदूकों मे साल तमाम
चप्पलें, रेशम, कंगन,
चेन, रंग, रोगन, रूज़, रूमाल, एहतिराम
बोर, सिंदूर, संदल, अलत्रक,
साड़ियाँ, अंजन, क़िमाम
मखमली-अंगिया,
रंगे हुए कपास के फाहे गुलफ़ाम
एक लदी हुई खुली अलमारी
बिस्तर से ड्रेसिंग टेबल तक बिखरे कपड़े गुमनाम
भ्रम, व्याकुलता और अस्वीकृति का समागम
इत्र झुलसे अक्स की लद्दर गुलाम
आइनों पर चिपकी कस्तूरी आंधियोंमें
चमकती बिंदियों की चांदनी इकराम
ज़ाफ़रान गुलाब और ख़स के सैलाब में
बेला के गजरे की बेड़ियों के अंजाम
ऊब जाता हूँ खुद मे रहता हूँ अगर
सफेद कुर्तों, साफ कागज़ मे हज़ार इल्ज़ाम
कुछ नही है मंज़ूर ज़िंदगी में
सादगी है मेरी बेनाम,
बस एक खाली नियाम