भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जूही के फूलों के बजाय सफ़ेद चावल ही हैं अधिक सुन्दर / महादेव साहा / सुलोचना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी भी विषय पर शायद यह कविता लिखी जा सकती थी
पिकनिक, मॉर्निंग स्कूल की मिस्ट्रेस
या स्वर्णचंपा की कहानी; शायद पक्षियों का प्रसंग,

पिछले कुछ दिनों से फ़ोन पर तुम्हारी बातें न सुन पाने से
जमा हुआ मेघ,
मन ठीक नहीं, इसे लेकर भी भरी जा सकती थी ये
पंक्तियाँ,
आर्किड या वीपिंग विलो भी हो सकते थे
सहजता से इस कविता का विषय;

लेकिन तीसरी दुनिया के ग़रीब देश के एक कवि के लिए
मनु मियाँ की डेगची की ख़बर भूलना सम्भव नहीं,
मैं इसीलिए टूटे जबड़े वाले हारू शेख की ओर देखकर
अन्तरराष्ट्रीय शोषण के विषय में ही सोचता हूँ,

पेट में भूख है, अभी समझता हूँ कविता के लिए क्या है अपरिहार्य
जूही के फूलों के बजाय कविता के विषय के रूप में,
इसलिए
सफ़ेद चावल ही है अधिक जीवन्त — और यह धूल मिट्टी का मनुष्य;

यह कविता इसलिए पैदल चलती है अन्धी गलियों की गन्दी बस्तियों में,
होटल के नाचघर के प्रति उसे नहीं है कोई आकर्षण,
उसे देखता हूँ — वह बैठी है एक भूमिहीन किसान की कुटिया में
एक नग्न शिशु के धूल भरे गाल को लगातार चूम रही है
मेरी कविता,

यह कविता कभी अकेली ही चलती चली जाती है अनाहारी
किसान के संग
ज़रूरी बातचीत करते हुए
उसके साथ उसकी ऐसी क्या बात होती है, नहीं जानता
अगले ही पल देखता हूँ वह भूखा किसान
शोषक के अनाज गोला को लूटने के लिए एकजुट खड़ा है;

इस कविता की अगर कोई सफलता है, तो यहीं है।

इसीलिए इस कविता के अक्षर लाल हैं, संगत के कारण ही लाल हैं
और कोई दूसरा रंग उसका हो ही नहीं सकता —
और दूसरा कोई विषय भी नहीं

इसीलिए
और कितनी बार कहूँ
जूही के फूलों के बजाय
सफ़ेद चावल ही है अधिक सुन्दर ।

04-06-2023

मूल बांगला भाषा से अनुवाद : सुलोचना

लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
      মহাদেব সাহা---ধূলোমাটির মানুষ
জুঁইফুলের চেয়ে শাদা ভাতই অধিক সুন্দর

যে-কোনো বিষয় নিয়েই হয়তো এই কবিতাটি লেখা যেতো
পিকনিক, মর্নিং স্কুলের মিসট্রেস
কিংবা স্বর্নচাঁপার কাহিনী; হয়তো পাখির প্রসঙ্গ

গত কয়েকদিন ধরে টেলিফোনে তোমার কথা না শুনতে
পেয়ে জমে থাকা মেঘ,
মন ভালো নেই তাই নিয়েও ভরে উঠতে পারতো এই
পঙ্‌ক্তিগুলো
অর্কিড কিংবা উইপিঙ উইলোও হয়ে উঠতে পারতো
স্বচ্ছন্দে এই কবিতাটির বিষয়;

কিন্তু তৃতীয় বিশ্বের দরিদ্রমত দেশের একজন কবির
মনু মিয়ার হাঁড়ির খবর ভুললে চলে না,
আমি তাই চোয়াল ভাঙা হারু শেখের দিকে তাকিয়ে
আন্তর্জাতিক শোষণের কথাই ভাবি,

পেটে খিদে এখন বুঝি কবিতার জন্য কি অপরিহার্য
জুঁইফুলের চেয়ে কবিতার বিষয় হিসেবে আমার কাছে
তাই
শাদা ভাতই অধিক জীবন্ত- আর এই ধুলোমাটির মানুষ;

এই কবিতাটি তাই হেঁটে যায় অন্ধ গলির নোংরা বস্তিতে
হোটেলের নাচঘরের দিকে তার কোনো আকর্ষণ নেই,
তাকে দেখি ভূমিহীন কৃষকের কুঁড়েঘরে বসে আছে
একটি নগ্ন শিশুর ধুলোমাখা গালে অনবরত চুমো খাচ্ছে
আমার কবিতা,

এই কবিতাটি কখনো একা-একাই চলে যায় অনাহারী
কৃষকের সঙ্গে
জরুরী আলাপ করার জন্য,
তার সঙ্গে কী তার এমন কথা হয় জানি না
পর মুহূর্তেই দেখি সেই ক্ষুধার্ত কৃষক
শোষকের শস্যের গোলা লুট করতে জোট বেঁধে দাঁড়িয়েছে;

এই কবিতাটির যদি কোনো সাফল্য থাকে তা এখানেই।

তাই এই কবিতার অক্ষরগুলো লাল, সঙ্গত কারণেই লাল
আর কোনো রঙ তার হতেই পারে না-
অন্য কোনো বিষয়ও নয়

তাই আর কতোবার বলবো জুঁইফুলের চেয়ে শাদা ভাতই
অধিক সুন্দর।

০৪-০৬-২০২৩