भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया से / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेंवहीं बइठेलें राम चारो भइया से सखी सभे पारेली गारी हो लाल।
सोने के थारी में जेवना परोसिले जेवन लागे राजा के कुँवरवा हो लाल।
हँसी-हँसी पूछेली सारी से सरहज के राउर बाप महतारी हो लाल।
रउरा त हई राम जी घर के निकलुआ से मुनि संगे फिरे धेनुधारी हो लाल।
का करे जाएब राम जी अवध नगरिया से फूहरी तोहारी महतारी हो लाल।
लाख-लाख गारी तोहे देहब सँवरि से हमनी के छोड़ी जिन जइहऽ हो लाल।
जो तुहूँ जइब राम जी अपनी नगरिया से हमनी के संगे लेले जइहऽ हो लाल।
मइयो के गारी तोहरा बहिनीके गारी से टोलवा परोसियों के गारी हो लाल।
विश्वामित्र मुनी दाढ़ी डोलावेलें इनहूँ के दीहों आजु गारी हो लाल।
गाधी सुअन हउएँ बाले के तारसी त उनका केकर परी गाली हो लाल।
निरखे महेन्दर मोहे सभके परानवाँ से भरि लेहु भर अंकवारी हो लाल।