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जेकब री नाळ / लुईज़ा ग्लुक / मीठेस निरमोही
Kavita Kosh से
भू लोक रै छळ - छंदां उळूज्योड़ा
कांई थें को सिधावणी चावौ नीं सुरग ?
म्हैं एक लुगाई रै बगीचा में रैवणियौ
म्हनै माफी बगसावै साहिबा
लाळसा म्हारै फुटरापै नै हर लीन्हौ
म्हैं वौ कोनीं जिणनै थें आपरै
मन- मिंदरिये थरप लियौ हौ
पण सगळा रा सगळा लोग - लुगाई
एक दूजै री चावना में जीवै है
म्हैं ई सुरग रै ग्यांन री इंछा पाळयोड़ौ हूँ
अबै थांरौ संताप,
जांणै एक रूंखड़ै री पानड़ां विहूंणी डाळ
परकोटै री खिड़की तांईं पूग रैयी है
अर अंत-पंत ई कांईं ?
नखत री गळाई एक फीरोजी फूल
इण दुनिया नै कदैई को तजै नीं
कांई औई थांरै आंसुवां रौ अरथ नीं है?
कविता रौ राजस्थांनी उल्थौ : मीठेस निरमोही