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जेनी के लिए / कार्ल मार्क्स / विनोद कुमार चन्दोला

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एक

जेनी, चिढ़ा सकती हो तुम मुझे यह पूछकर
मेरे गीतों का शीर्षक “जेनी के लिए” होता है क्योंकर
जब सिर्फ़ तुम्हारे लिए नाड़ी मेरी चलती है तेज़ ख़ास
जब गीत मेरे सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं उदास
जब सिर्फ़ तुम फूँक सकती हो उनके दिल में जान
जब तुम्हारा नाम हर हिज्जा लेता मान
जब तुम दो हर सुर को सुरीलापन
जब देवी से हो न किसी साँस की भटकन?
ऐसा इसलिए कि प्यारा नाम सुन पड़ता है मीठा कितना
और इसकी लय-तान मुझसे कहती है इतना
कितना भरा-पूरा, मधुर है इसका गुँजन
जैसे कि दूर कहीँ आत्माओं का कम्पन
जैसे लय-संगति सोने के तारोंवाले सिदर्न<ref>एक वाद्य</ref>की
जैसे कोई चमत्कार भरी ज़िन्दगी जादू की

दो

देखो, भर सकता हूँ मैं किताबें कई हज़ार
लिख-लिख सिर्फ़ “जेनी” हर पंक्ति में बार-बार
फिर भी होगा छिपा उनमें विचार जगत
शाश्वत कृत्य और अपरिवर्तनीय संकल्प
मधुर पद्य जो करता हो अब भी कोमलता से आस
ईथर<ref>अन्तरिक्ष</ref> की सारी चमक और सारा प्रकाश
बेचैन दुःख की पीड़ा और अपूर्व आनन्द-भान
सारा जीवन और सारा है जो मेरा ज्ञान
पढ़ सकता हूँ मैं इसे दूर के तारों में
आता है वापस यह मुझ तक पछुआ-बयारों में
भीषण लहरों की गर्जना के होने में
सच, लिखूँगा मैं इसे हर एक कोने में
कि देख सकें आनेवाली सदियाँ सभी
है प्यार जेनी, प्यार का नाम है जेनी

रचनाकाल : 1836

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद कुमार चन्दोला

शब्दार्थ
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