जेल के सींकचे पकड़कर खड़ी
ओ मृत सन्तान की माँ !
चेहरा ग़ायब, मांसपिण्ड, ख़ून-पसीना,
हाड़-मांस, मज्जा की गहराई से
पहचान लोगी अपनी सन्तान का
प्यारा चेहरा !
पहचानती हो तुम,
कौन तुम्हारी कोख की सन्तान है ?
शिनाख़्त की है
बेटे की लाश कौनसी है ?
किसे तुमने गर्भ में पाला था ?
किसे अलग करके चुनोगी ?
ओ सन्तान की माँ !
एक ही ख़ून बह रहा है
इन तमाम बदनों में
साँस की हवा भी एक ही है
एक ही बारूद में आस्था है जिनकी,
उनकी ज़िन्दगी एक सी है
ख़ून के सागर में लेटे
वे आज भी
इस धरती के बेटे हैं ।
जेल के सींकचे पकड़कर खड़ी
हे जननी !
तू सब कुछ खो चुकी है
पर अलग से
किसका चेहरा ढूँढ़ लेना चाहती है तू
ओ माँ !?
1972
मूल बांग्ला से अनुवाद : कंचन कुमार