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जेहल जैभोॅ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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जैहिनें धीया अप्पन समझॅ,
तैहिनें धीया परिया।
तबकीयेॅ झरकायकेॅ मारभौ?
कीये चलै भौ छड़िया?

अप्पन बेटी दूध केॅ धोयल,
समधी के वदमशिया।
अनकर बेटी रंडी-मुंडी,
अप्पन कुन्ती-सीया?

बेटाँ करतन गुंडा गरदी,
लुटतन रेल, खजाना।
सास-ससुर लोॅग नखड़ा करतन,
करतन लाख बहाना।

सहनशीलता केॅ सीमा छै
सुनिलेॅ हे घरवाली।
दुल्हिन केॅ की करभौ बोलॅ?
बनधुन दुर्गा काली।

एगो बतिया मानोॅ हम्मर,
मिलजुल नव परिवार गढ़ोॅ।
सब समान बेटी या दुल्हिन,
अमन चैन केॅ राह बढ़ोॅ।

तिलक-दहेज केॅ खातिर कखनों
नैं करियौ तकरार।
नैं तॅ जेहल जैभौ एक दिन
उजड़त ई संसार।

-10.11.1992