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जे० एन० यू० पर / पंकज चतुर्वेदी

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साम्यवाद का अन्त हो गया
अन्त हुआ इतिहास का
है यथार्थ बेहद रपटीला
सपना है संत्रास का
अब तुमसे ही होगा बेड़ा पार जी !

बहुराष्ट्रीय निगम कमाने
आए बड़ा मुनाफा
वर्ल्ड-बैंक डब्ल्यू० टी० ओ० के
बल में हुआ इज़ाफ़ा
इनके निर्देशों को तुम करना स्वीकार जी !

मस्ज़िद के मलबे पर जिनकी
खड़ी हुई है सत्ता
धर्म और संस्कृति के वे ही
शातिर हुए प्रवक्ता
ऐसा धर्म मुबारक़ हो ऐसी सरकार जी !

अमरीकी जलवे के सम्मुख
तुम नत-शिर हो जाना
देश बिलखता भी हो तो तुम
हरगिज़ मत शरमाना
कला बचाना अपनी, मत करना प्रतिकार जी !
जे० एन० यू० पर तुम रखो अपने उद्गार जी !