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जे उट्ठ चल्लियों चाकरी, चाकरी वे माहिया / पंजाबी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जे उट्ठ चल्लियों चाकरी, चाकरी वे माहिया

सान्नूँ वी लै चल्लीं नाल वे

अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे

तूँ करेंगा चाकरी, चाकरी वे माहिया

मैं कत्तांगी सोहणा सूत वे

अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे

इक्क ट्का तेरी चाकरी, चाकरी वे माहिया

लख्ख टके दा मेरा सूत वे

अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे


भावार्थ

--'यदि काम पर जाने के लिए तुम तैयार हो, काम पर जाने को प्रीतम ! तो मुझे भी अपने साथ ले चलो ।

अजी, मैं भी कहूँ, मुझे नींद क्यों नहीं आती ? तुम करोगे नौकरी, ओ मेरे प्रीतम ! और मैं कातूंगी सूत सुन्दर

मेरे प्रिय ! अजी, मैं भी सोचती हूँ, ये नींद क्यों नहीं आती ? एक रुपए की नौकरी तुम्हारी, ओ प्रीतम ! मेरा

सूत होगा एक लाख का । अजी, मैं भी कहूँ मुझे आख़िर नींद क्यों नहीं आती ।'