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जे देवता सभक छल ओ चोर भऽ गेलै / बाबा बैद्यनाथ झा

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जे देवता सभक छल ओ चोर भऽ गेलै
ओ ज्ञान-पूँज रहितो लतखोर भऽ गेलै

सभ दिन ओ ठकि रहल छल मीत बनि कोनाकऽ
परदा जखन हटल छै तँ शोर भऽ गेलै

उनटा बसात बहलै उन्मत्त भऽ कोम्हर सँ
सभ दिनसँ चुप्प छल जे मुँहजोर भऽ गेलै

मन्दिर जखनसँ बनलै अपकर्मकेर अड्डा
आतंक, डर आ चिन्ता घनघोर भऽ गेलै

एक बाढ़ि तेहन अयलै छद्म-वंचनाकेर
विश्वास दहि गेलै सभ हिलकोर भऽ गेलै

ककरो ने आब कहबै दुःख वेदना अपन हम
संगी हमर तऽ एसकर बस नोर भऽ गेलै