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जे लिखलोॅ छै मिललोॅ नै छै / गुरेश मोहन घोष

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जे देलियै से लिखलोॅ नै छै,
जे लिखलोॅ से मिललोॅ नै छै।
आभी तांय मस्जिद के मालिक-
मुल्ला सब ई गिनलोॅ नै छै।

बस्सोॅ पर जा टिकसो नै छै,
डीलर-चीनी-चिकपो नै छै,
भिकसी नै कम्पौन्डर बाबू।
कोय चोर की चिन्हलोॅ नै छै?

गंगा जल तेॅ रोज ढरै छै,
कानी कानी रोज मरै छै,
थाना पर ई सिव मन्दिर के-
चौरा आय तांय भिंगलोॅ नै छै।

कोढी फुटतै आँखी जैतै,
बसोॅ में नै एक्को रहतै,
कोना छिपलोॅ भगवानोॅ के-
आसन आय तांय हिललोॅ नै छै।

राती सें परभाती बितलोॅ,
गांती हमरोॅ भिंजलोॅ तितलोॅ,
अरमानोॅ के कोढ़ी भैया-
छाती में ई खिललोॅ नै छै।

सूरज उगले भोरे लेकिन,
नीरज आभी खिललोॅ नै छै।
धीरज हमरोॅ टललोॅ जाय छेॅ,
दिन दुपहरिया ढललोॅ नै छै।

दफनाबै लेॅ जालिम केॅ-
दिल हमरोॅ तोरोॅ मिललोॅ नै छै।
तानोॅ बानोॅ किनलोॅ लेकिन,
कफ्फन हिनकोॅ बिनलोॅ नै छै।

खानी कब्बड़ पैन्हैं राखोॅ,
बान्होॅ कफ्फन भय नै राखोॅ,
लुक्का बारी भाग लगाय लेॅ-
जोर जुआनी पिललोॅ नै छै।
जे लिखलोॅ से मिलल नै छै।