भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसी करनी वैसी भरनी / अर्चना कोहली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसी करनी वैसी भरनी, गीता का है ज्ञान।
फल मिलता हमको कर्मों का, करना इसका ध्यान॥

बोया कीकर का तरु जब है, कैसे पाएँ आम।
जीवन में जो सुख दुख आते, कर्मों का परिणाम॥

जैसे संस्कारों को पाया, वैसा करते काज।
विषधर बन जो फ़न फैलाए, गिरती उनपर गाज।

खाई में वे ही गिरते हैं, जो खोदे हैं कूप।
करना ऐसे कर्मों को सब, जग में बनते भूप।

समझे पीड़ा सबकी जो हैं, पाते सबका प्यार।
 अच्छाई जो करते रहते, सपने हैं साकार॥

पढ़ते पुस्तक में उदाहरण, दुर्जन का हो नाश।
क्यों करते निंदित कामों को, सुधरे मानव काश। ।