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जैसी बहती हों धाराएँ, उनके संग-संग बहना सीखो / रुचि चतुर्वेदी

जो भी जैसा भी मिलता है उसमें ही खुश रहना सीखो
जैसी बहती हों धाराएँ उनके संग-संग बहना सीखो।

दिवस नया होता है प्रतिदिन अनुभव सिखलाकर जाता है,
नित्य भोर नव छंद सुनाती सांझ हृदय नव लय गाता है।
कहता है जो मन निश्छल उन भावों को भी कहना सीखो॥
जैसी बहती हों धाराएँ उनके संग-संग बहना सीखो।

प्राणों की पुस्तक पढ़कर इस जीवन को नव ध्येय सौंप दो।
भावों की इन परिमापों को मन की यह परिमेय सौंप दो।
सत्य अटल है सुख बरसेगा दुख के छींटे सहना सीखो॥
जैसी बहती हों धाराएँ उनके संग-संग बहना सीखो।