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जैसे कान्ह जान तैसे उद्धव सुजान आए / ग्वाल
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जैसे कान्ह जान तैसे उद्धव सुजान आए ,
हैँ तो मेहमान पर प्रान हैँ निकारे लेत ।
लाख बेर अँजन अँजाए इन हाथन सोँ ,
तिनको निरँजन कहत झूठ धारे लेत ।
ग्वाल कवि हाल ही तमालन मे बालन मे ,
ख्यालन मे खेले हैँ किलोल किलकारे लेत ।
ह्याँ न परचेरी जोग चेरी सँग पर चेरी ,
भेज परचेरी जोग परचे हमारे लेत ।
ग्वाल का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।