सबसे ऊपर की फुनगी पर
पीपल के दो पत्ते डोलते
जैसे कान हवा के हिलते
चौकस रहता हर पल पीपल
कहाँ छिपेगी जंगल की वात
करवट भी लेती अलसाये
हिल ही जाते अल्हड़ पत्ते
नज़र में आ जाती सबके
गगन हमेशा ही कहता
छोड़ दो अपनी चंचलता
वात से हो जाओ निर्वात
सुन कभी तू मेरी बात
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