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जैसे कि ज़हर घुल गया हो जाफ़रान में / जयप्रकाश त्रिपाठी

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सब तीर हैं मेरे लिए उसकी कमान में।
कितना बड़ा गुमान है उसके बयान में।

नफ़रत-सी मुझसे हो गई है इस क़दर उसे,
जैसे कि ज़हर घुल गया हो जाफ़रान में।

उसकी ज़मीं पे भार था जैसे मेरा वजूद,
तो ख़ुद को मैंने फेंक दिया आसमान में।

हर लफ़्ज़ रंजो-गम के, सौ-सौ उलाहने
क्या-क्या भरा हुआ है उसकी बदज़ुबान में।

जब ज़िन्दगी को सौंप दिया रोशनी के हाथ
तो लहर उठी तड़प अन्धेरे की जान में।