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जैसे कोई सितारिया... / केदारनाथ अग्रवाल

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जैसे कोई सितारिया द्रुत में सितार को बजाए,

लय में पहुँच कर वह स्वयं लय हो जाए,

फिर न वह सितार को बजाए--

चलता हाथ ही बजाए,

और वह संगीत-- झंकृत संगीत

तात्विक संगीत हो जाए,

केवल आनन्द ही आनन्द लहरे और लहराए,

केवल शरीर ही उसका

सितार से टिका रह जाए,


ओ मेरे संसार !

मैं यही तुमसे पाऊँ

जब तक मैं जियूँ, तुम्हें बजाऊँ

न मैं रुकूँ न कोई रोक पाए

आयु मैं अपनी इस तरह बिताऊँ ।