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जैसे बनता हो कारखानों में / शोभा कुक्कल
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जैसे बनता हो कारखानों में
दिल कशी अब कहां है गानों में
हम में इतनी सकत नहीं साहिब
हमको डालो न इम्तिहानों में
बात को बरमला कहेंगे हम
क्यों कहें बात उनके कानों में
सच हुआ जा रहा है लुप्त कहीं
झूठ ही झूठ है बयानों में
देख कर ताबनाकियां तेरी
गुम हुए तारे आसमानों में
फल नहीं मिलता उनको मेहनत का
बेक़रारी सी है किसानों में
इस क़द्र बढ़ गयी है महँगाई
पैर कैसे रखे दुकानों में
ज़हर गलती है सब ज़बाने अब
अब कहां है वो रस ज़बानों में