भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसे राम ललित तैसे लोने लषन लालु / तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग नट
जैसे राम ललित तैसे लोने लषन लालु |
तैसेई भरत सील-सुखमा-सनेह-निधि, तैसेई सुभग सँग सत्रुसालु ||
धरे धनु-सर कर, कसे कटि तरकसी, पीरे पट ओढ़े चले चारु चालु |
अंग-अंग भूषन जरायके जगमगत, हरत जनके जीको तिमिरजालु ||
खेलत चौहट घाट बीथी बाटिकनि प्रभु सिव सुप्रेम-मानस-महालु |
सोभा-दान दै दै सनमानत जाचकजन करत लोक-लोचन निहालु ||
रावन-दुरित-दुख दलैं सुर कहैं आजु "अवध सकल सुखको सुकालु|
तुलसी सराहैं सिद्ध सुकृत कौसल्याजूके, भूरि भाग-भाजन भुवालु ||