भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसे / नील कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे
मेरे सबसे अजीज़ दोस्त की
आँखों में उमड़ते
ढेर सारे प्यार के बीच
बची रहती है मेरे लिए

थोड़ी-सी घृणा
थोड़ा- सा फ़रेब,

जैसे दिन के उजाले में
बचे रहते हैं
अँधेरे कोने,

जैसे फलों की मिठास में
बचा रहता है
थोड़ा-सा नमक,

जैसे नमकीन होठों में
बची रहती है
मिठास,

जैसे सफ़ेद से सफ़ेद कपड़ों मे
बची रहती है मैल

और इन सबके बीच
जाने कैसे बची रह जाती है
दोस्ती, आख़िरकार ।