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जोपै सौ बेर गिरौ गिर कै सम्हरते रहियों / मदन मोहन शर्मा 'अरविन्द'
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जोपै सौ बेर गिरौ गिर कै सम्हरते रहियों
गैल कैसी हू मिलै हँस कै गुजरते रहियों
राह रोकें जो कहूँ दर्द के सागर गहरे
नाव धीरज की पकड़ पार उतरते रहियों
टूटी पँखुरी से हवा बीच बिखर जइयों मत
तुम जो बिखरौ तौ महक बन कै बिखरते रहियों
रंग देखै तौ खरौ सौनौ बतावै दुनिया
आँच में जेते तपौ तेते निखरते रहियों
पास कै दूर मिलै, मिल कै रहैगी मंजिल
अपने हिस्सा कौ सफ़र चाव सौं करते रहियों