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जोबन के रँग भरी ईँगुर से अँगनि पै / देव
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जोबन के रँग भरी ईँगुर से अँगनि पै ,
ऎँड़िन लौँ आँगी छाजै छबिन की भीर की ।
उचके उचौ हैँ कुच झपे झलकत झीनी ,
झिलमिल ओढ़नी किनारीदार चीर की ।
गुलगुले गोरे गोल कोमल कपोल ,
सुधाबिन्दु बोल इन्दुमुखी नासिका ज्योँ कीर की ।
देव दुति लहराति छूटे छहरात केस ,
बोरी जैसे केसरि किसोरी कसमीर की ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।