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जो अना की डाल से उतरे नहीं / अभिषेक कुमार सिंह

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जो अना की डाल से उतरे नहीं
वो कसौटी पर खरे उतरे नहीं

रूप के जंगल में जो गुम हो गये
रूह के आँचल तले उतरे नहीं

हम शिखर के दास्तान ए ग़म रहे
हम ढलानों के गले उतरे नहीं

झील-सी आंखें तो थीं दिलकश मगर
डूब जाते इसलिए उतरे नहीं

झुक गये बेचैनियों के बोझ से
जब दिलों से फासले उतरे नहीं

उम्र भर आंखों में ही बैठे रहे
रतजगों के काफिले उतरे नहीं

ख्वाहिशों के बुलबुले जब भी उठे
फिर सुकूँ के द्वार पर उतरे नहीं

चाँद के जूड़े में हम टाँके गये
हम गगन के फूल थे उतरे नहीं