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जो अयाचित हो उसी को दान कहते हैं? / बलबीर सिंह 'रंग'

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जो अयाचित हो उसी को दान कहते हैं?
क्या हुआ नभ पर न यदि,
खग का बसेरा हो सका;
क्या हुआ अरमान यदि,
पूरा न मेरा हो सका।
जो अधूरा हो उसे अरमान कहते हैं।

चीर कर गिरि के हृदय को,
बह रही सरिता अबाधित;
उर्मियों में हो रहा कलकल,
सजल क्रन्दन निनादित।
कवि उसे गिरि के हृदय का दान कहते हैं।

जो पराई पीर न यदि,
आह भर सकता नहीं;
जो किसी के प्यार पर,
विश्वास कर सकता नहीं।
उस अभागे प्राण को पाषाण कहते हैं।