याज्ञवल्क्य पैंट-कमीज़ पहनकर ऊँचे आसन पर जा रहे है । जटिल समस्याएँ प्रखर चिन्तक उदीग्न रहता है मेखा - मुख । फ़न की तरह हाथ उठाकर जिज्ञासु को कर देते है शांत । कुश-वाणी आरी सा धार । लाल आँखों से देखते हैं -- हिंदी के कवि को.... तो हँस-हँस पड़ते हैं ।