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जो कभी था मेरा वह बिका मिल गया / आकिब जावेद
Kavita Kosh से
जो कभी था मेरा वो बिका मिल गया
ज़िंदगी का अज़ब ये सिला मिल गया
था कभी लब पे चर्चा हमारा मगर
आज चर्चा ही लब पे ज़ुदा मिल गया
माँगता खूब था रब से वो ज़िंदगी
आपका यूँ वहाँ से पता मिल गया
वक़्त रहते कभी जो न मेरा हुआ
दर पे वो भी किसी के खड़ा मिल गया
नज़रे तेरी मुझे सब बयाँ कर रही
नाम का तेरे इक क़ाफ़िया मिल गया
बंद हाथों में उसके था क्या क्या यहाँ
सोचते-सोचते कुछ नया मिल गया
हम चले है सफर में अकेले तो क्या
ढूँढते-ढूँढते यूँ ख़ुदा मिल गया