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जो कुछ है मेरी मुट्ठी में / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
जो कुछ है मेरी मुट्ठी में
मैं गिराती चलती हूँ
जितनी भी कोशिश करूँ
सहेजने की
क्या है मेरी मुट्ठी में
मैं कोशिश करती हूँ जानने की
संवेदनाएँ, शिकायतें या फिर
कुछ सिक्के
जो कुछ भी हैं वे, गिरते जाते हैं
और हर बार उनका गिरना
अंकित हो जाता है
मेरी दाई आँख के
एक दम नीचे
एक काले धब्बे की शकल में
मैंने खिड़की खोल दी हैं
दरवाजे भी,
पर्दों को हटा दिया,
रोशनी मेरे कमरे घुस सकती है
अल्ट्रा वायलेट के बारे में
चिन्ता किए बिना
मैंने खोल दी है
मुट्ठी भी
छुटकारा मिल गया मुझे
उन सब से
जो कुछ मेरी मुट्ठी में था