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जो खुल कर अपनी भी खामी कहते हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला

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जो खुलकर अपनी भी ख़ामी कहते हैं
हम ख़ुद को उनका अनुगामी कहते हैं

चटकी छत, हिलती दीवारें, टूटा दर
आप हमें किस घर का स्वामी कहते हैं

तुम बोलो इस देश की संसद को संसद
हम तो उसे सांपों की बामी कहते हैं

हमसे ज़िन्दा है उल्फ़त का कारोबार
लोग हमें दिल का आसामी कहते हैं

अच्छा है क्या ख़ुद की खिल्ली उड़वाना
क्यों सबसे अपनी नाकामी कहते हैं

मत बोलो हल्के हैं शेर ‘अकेला’ के
जाने क्या क्या शायर नामी कहते हैं