जो गुफ्तनी नहीं वो बात भी सुना दूंगा / नासिर काज़मी
जो गुफ्तनी नहीं वो बात भी सुना दूंगा
तू एक बार तो मिल सब गिले मिटा दूंगा
मजाल है कोई मुझसे तुझे जुदा कर के
जहां भी जायेगा तू मैं तुझे सदा दूंगा
तेरी गली में बहुत देर से खड़ा हूँ मगर
किसी ने पूछ लिया तो जवाब क्या दूंगा
मेरी खमोश निगाहों को चश्मे-कम से न देख
मैं रो पड़ा तो दिलों के तबक़ हिला दूंगा
यूँ ही उदास रहा मैं तो देखना इक दिन
तमाम शहर में तन्हाईयाँ बिछा दूंगा
ब-पासे-सोहबते-देरीना कोई बात ही कर
नज़र मिला तो सही, मैं तुझे दुआ दूंगा
बुलाऊंगा न मिलूंगा, न ख़त लिखूंगा तुझे
तेरी खुशी के लिए खुद को ये सज़ा दूंगा
वो दर्द ही न रहा वरना ऐ मता-ए-हयात
मुझे गुमां भी न था मैं तुझे भुला दूंगा
अभी तो रात है कुछ देर सो ही ले 'नासिर'
कोई बुलायेगा तो मैं तुझे जगा दूंगा।