जो चतुर हैं ओढ़ लेते हैं अमावस / विमल राजस्थानी
होंठ पर मुस्कान थिरके
घन-घटा रह जाय घिर के
जिन्दगी के इस सफर में, रक्त से भींगी डगर में
उफन क्षण भर आँसुओं का छलछलाना भी मना है
गैल है यह प्रेम-नगरी की कँटीली
भर न आहें, झुकी आँखें कर न गीली
बाँध ले सिर से कफन ओ रे दिवाने
फूँक कर लौटे हजारों आशियाने
इस डगर दो डेग चलकर
युग्म दृग में अश्रु-जल भर
एक पल के लिए साथी ! लड़खड़ाना भी मना है
बाण छूटेंगे चतुर्दिक वर्जना के
फूल मसले जायंेगे प्रिय-अर्चना के
जाल फेंके जायेंगे जग के नियम के
मेघ गरजेंगे, दहाड़ेंगे धरम के
झुक, विनय से गिड़गिड़ाकर, वेदना मन की जताना भी मना है
जो चतुर हैं ओढ़ लेते हैं अमावस
सरल, सूधे हृदय-दृग में बसा पावस
गा नहीं सकते व्यथा-संगीत जी भर
आँसुओं की प्यास का दुख-दर्द पीकर
एक पल धीमें सुरों में गुनगुनाना भी मना है