भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो तू सागर से बनी थी / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
जो तू सागर से बनी थी
(जलजा की प्रिया की परछाईं)!
एक दिन शान्त, सोहनी, सुहासिनी,
धूप-सुनहली, चाँदनी-रुपहली,
नाविक की मनमोहिनी-
एक दिन वरुण की बाज-लदी कोहनी,
आधी विनाशिनी!

अक्टूबर, 1969

रूप और प्रेम की देवी अफ्रोदाइती सागर-फेन से सहज उद्भूत हुई थी। कीप्रस (साइप्रस) में उसका मुख्य मन्दिर था, इस लिए वह कीप्रिस भी कहलाती थी। ग्रीक सागर-देवता पोसेइदोन् (वरुण) वज्र-त्रिशूल धारण करता है; आँधियाँ-बिजलियाँ उसी के अधीन हैं।