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जो दिया तुमने वो सब सहना पड़ा / राकेश जोशी

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जो दिया तुमने वो सब सहना पड़ा
पत्थरों के शहर में रहना पड़ा

दौर ऐसे भी कठिन आए हैं जब
ख़ुद ही अपनी आँख से बहना पड़ा

हम मुखौटों की दुकानों में बिके
जो थे हम, उससे अलग दिखना पड़ा

हर जगह बौने बने राजा मिले
जब कहा बौनों ने झुक, झुकना पड़ा

तुमको औरों से नहीं फ़ुर्सत मिली
हमको ख़ुद से ही सदा लड़ना पड़ा

रोटियाँ बनकर उगें, ख्वाहिश थी ये
झाड़ियाँ बनकर उगे, उगना पड़ा

हम मशीनों की तरह लिखते रहे
जो कहा तुमने, हमें लिखना पड़ा

क्या बताएँ किसलिए ‘राकेश’ को
बारहा जीना पड़ा, मरना पड़ा