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जो देखते हुए नक़्श-ए-क़दम गए होंगे / 'शमीम' करहानी
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जो देखते हुए नक़्श-ए-क़दम गए होंगे
पहुँच के वो किसी मंज़िल पे थम गए होंगे
पलट के दश्त से आएँगे फिर न दीवाने
पुकार लो कि अभी कुछ क़दम गए होंगे
जो मावरा-ए-तसव्वुर नहीं कोई सूरत
तो बुत-कदे ही तक अहल-ए-हरम गए होंगे
तिरे जुनूँ ने पुकारा था होश वालों को
न जाने कौन से आलम में हम गए होंगे
मिलेंगी मंज़िल-ए-आख़िर के बाद भी राहें
मिरे क़दम के भी आगे क़दम गए होंगे
न पूछ हौसला-ए-हम-रहान-ए-सहल-पंसद
जहाँ थकन ने कहा होगा थम गए होंगे
जो कह रहे हैं कि आई नज़र न मंज़िल-ए-दोस्त
वो लोग जानिब-ए-दैर-ओ-हरम गए होंगे
कहाँ से आए दियार-ए-शफ़क़ में रंगीनी
इधर से तेरे शहीदान-ए-ग़म गए होंगे
‘शमीम’ हिम्मत-ए-पा-ए-तलब की बात न पूछ
वहाँ गया हूँ जहाँ लोग कम गए होंगे