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जो बढ़ते हैं कलाकारी से आगे / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
जो बढ़ते हैं कलाकारी से आगे
निकल जाते हैं तैयारी से आगे
तुम्हें कुछ क्यों नज़र आता नहीं है
तुम्हारी चार-दीवारी से आगे
सुनो तुम ‘मातहत’ हो मेरी मानो
चलो मत अपने अधिकारी से आगे
करो जलते शहर की कल्पना भी
घृणा की एक चिंगारी से आगे
तुम्हारे पास उत्तर हो तो बोलो
रहे क्यों नर सदा नारी से आगे
हज़ारों लोग लाइन में खड़े हैं
हमारी -आपकी बारी से आगे
उन्हीं की बाट मंज़िल जोहती है
निकलते हैं जो दुश्वारी से आगे