भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो बाकी है / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
कुछ काम हैं
जो अधूरे हैं
उन्हें पूरा करना अभी बाकी हैं
जो रूठे हैं, अभी उनको मनाना बाकी हैं
मेरी अपनी कुछ मजबूरियाँ थी
अपनो को अभी समझाना बाकी है
अधुरे है, कुछ सपने अभी भी
उन्हें अंजाम तक पहुँचाना बाकी हैं
कुछ बुनना बाकी है
तुम्हारा मेरा आशियाँ जोडना अभी बाकी हैं
बोए थे चमन में कुछ बीज
उन फूलों को खिलना अभी बाकी हैं
तुमसे पूरी तरह कहाँ मिल पाया
तुम्हे उड़ते देखना अभी बाकी हैं
बाकी है अभी काफी कुछ लिखना
जो मैंने जिया और देखा
थमूंगा नहीं मैं
देखो, मुझमें अभी थोड़ी साँस बाकी हैं