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जो बात करने की थी काश मैंने की होती / शहरयार

जो बात करने की थी काश मैंने की होती
तमाम शहर में इक धूम सी मची होती

बदन तमाम गुलाबों से ढक गया होता
कि उन लबों ने अगर आबयारी की होती

बस इतना होता मेरे दोनों हाथ भर जाते
तेरे ख़ज़ाने में बतला कोई कमी होती

फ़िज़ा में देर तलक सांसों के शरर उड़ते
ज़मीं पे दूर तलक चांदनी बिछी होती

मैं इस तरह न जहन्नम की सीढ़ियां चढ़ता
हवस को मेरी जो तूने हवा न दी होती।